प्रतिदिन हम लगभग 21600 श्वास लेते है. वह प्रत्येक श्वास एक शिव का रूप है. जब तक वह श्वास आती है हम जीवित होते है अन्यथा शरीर एक लाश हो जाता है. इसी तरह जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में कभी शिव नाम का स्मरण नहीं किया, शिव भक्ति नहीं की उसका शरीर भी मात्र एक लाश के समान ही है.
सही जीवन जीने के लिए शिव की बंदगी बहुत जरुरी है. बिना शिव भक्ति के शिव स्मरण के हमारा जीवन सुखमय आनंदित नहीं हो सकता है.
जहाँ पर ‘मैं’ का संबोधन आ जाता है, वहां अहंकार आ ही जाता है. जब आप कहते है, मैंने यह कार्य किया, मैं यह कार्य कर रहा हूँ. मैं इस वस्तु का मालिक हूँ यह आपके भीतर अहंकार को जन्म देता है. और एक बात हमेशा ध्यान देना चाहिए, आपके मन में भक्ति और अहंकार दोनों एक साथ नहीं रह सकते. यदि आपके मन में अहंकार है तो वहां कभी भक्ति का वास नहीं हो सकता.
जब मन बहुत उदास हो जाए, जब मन में किसी के ताने, किसी की कही गई बाते मन को कचोट रही हो, आपको तकलीफ दे रही हो, तब शिव मंदिर में थोड़ी देर शान्ति से नंदी के पास बैठकर श्री शिवाय नमस्तुभ्यम मंत्र का जाप करें. आपको शान्ति का अनुभव होगा.
एक दिन काम देव ने रति से शिवजी के लिए अपमान जनक शब्द कह दिए. रति वे शब्द चुप चाप होकर सुनती रही, उसकी आँखों से आंसू बहते रहे. रति शिव की उपासक थी. वह भगवान शिव की आराधना में लीन रहती थी. परिणाम स्वरूप एक समय शिवजी की क्रोध अग्नि में जब कामदेव जल कर भस्म हुए, तब उनके शिव जी के क्रोध के सामने रति खडी हो जाती है. एक तरह जहाँ शिवजी के क्रोध के सामने कोई आने की हिम्मत भी नहीं दिखा सकता था, वहीँ रति शिव जी के सामने आकर खड़ी हो गई.
रति चूँकि अपनी बाल्य अवस्था से ही शिव का पूजन करती थी. पार्थिव शिवलिंग का पूजन कर उस पर जल अर्पित करती थी. उस भक्ति का ही बल था कि वह शिव के सामने खड़ी हो जाती है.
लिंग पुराण में वर्णन आता है, जल अर्पित कर उस जल को यदि आप ग्रहण नहीं भी करते है, और उस जल को यदि अपने ऊपर अपने मस्तक पर छींट भी लेते है, तो आप अपने ऊपर शिवजी की कृपा का एक कवच धारण कर लेते है. आप आप किसी संकट में नहीं पड़ सकते है.
रति शिव के सम्मुख खड़ी रही, भोलेनाथ का क्रोध शांत हुआ, उन्होने पूछा रति क्या हुआ क्या चाहिए. रति ने कहा हे भोलेनाथ मुझे मेरे पति काम देव चाहिए. भोलेनाथ कहते लगे कामदेव? वह तो अभी मेरे सामने जलकर भस्म हो गया है, वह कैसे प्राप्त हो सकता है.? रति कहने लगी हे प्रभु मैंने आपकी सेवा की है, आपको पूजा है, आपको जल अर्पित किया है. मेरे पति को तो आपको मुझे देना ही पड़ेगा. शिवजी ने कहा कैसे हो सकता है तुम्हारा पति अब भस्म हो चूका है. रति ने निवेदन किया आप मेरे पति की इस भस्म को ही अपने शरीर पर धारण कर लीजिए. शिव जी मना करते है, मैं यह धारण नहीं कर सकता. परन्तु फिर भी रति नहीं मानी, शिव जी को अपने भक्त की जिद पूरी करनी पड़ी. शिवजी ने उस भस्म को धारण किया और रति से कहाँ हे रति द्वापर आएगा तब द्वापर में शिवजी कृष्ण जी के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में तुम्हे तुम्हारा पति प्राप्त होगा.
प्रयास करें काशी की या उज्जैन की जहाँ की भस्म भी संभव हो सके, वह भस्म हमारे घर होनी चाहिए, एक हफ्ते में, 15 दिन में शिवजी पर वह भस्म लगानी चाहिए. एवं जिस घर में शिवजी पर अर्पित वहा भस्म होती है. उस घर पर कभी कोई जादू टोना काम नहीं करता. शिव पर चढ़ी भस्म का दर्शन, या शिव पर चढ़ी भस्म कोई अपने मस्तक पर लगा कर जा रहा है, एवं उसके मुख का दर्शन भी कर लेवे, या उसको स्पर्श कर चल रही हवा भी यदि हमें छू लेती है तो हमारा कल्याण हो जाता है.
कभी कभी कुछ भक्त प्रश्न करते है, यदि घर में एक शिवलिंग है, एवं जब हम अपने परिचित रिश्तेदार के यहाँ गए तो उन्होंने एक शिवलिंग दिया है, क्या दो शिवलिंग घर में रख सकते है. तब गुरुदेव बताते है – एक से अधिक शिवलिंग घर में रख सकते है, इसमें कोई दोष नहीं होता है.
यदि घर में कोई शिवलिंग है एवं वह खंडित भी है तो भी वह पूजनीय है ऐसे शिवलिंग का पूजन करने से कोई दोष नहीं होता है. ऐसे ही जब पार्थिव शिवलिंग के पूजन में जब मिट्टी से या बालू से जब शिवलिंग बनाया जाता है तब भी पूजन के दौरान यदि वह घुलने लगता है, या जल अर्पित करने के दौरान यदि वह अलग अलग टुकड़ों में भी बट जाता है तब भी वह खंडित नहीं माना जाता है. वह पार्थिव शिवलिंग के महत्व को ही रखता है.
विदल और उत्पल का संहार करने के लिए माता पार्वती ने कुंदुक का उपयोग किया एवं वह संहार करने के उपरान्त वह कुंदुक भगवान शिव के चरणों में आ जाता है. शिवजी ने कहा हे पार्वती यह कुंदुक आज मेरे चरणों में आया है जिससे मेरा एक नाम कुंदकेश्वर हुआ है. हे पार्वती जो भी भक्त औषधि का सेवन करते समय मेरे इस नाम ‘कुंदकेश्वर महादेव’ का स्मरण करता है, उसका रोग, उसकी पीड़ा जल्द से जल्द दूर होती है.
कवि और कथाकार में अंतर होता है.
कवि का काम होता है, वह शब्दों को जोड़ लेता है. जबकि कथाकार का काम होता है. जो भी भक्त कथा में आए है उन्हें शिव से जोड़ दे. ताकि जब भक्त एक बार शिव से जुड़ जाए तो उनके कष्ट, उनकी तकलीफे दूर होती चली जाए.
जब घर बनाते है तो हम सभी को बताते है, देखो हमने यह घर बनाया है एवं इस घर में एक पूजा घर भी बनाया है. जहाँ शिवलिंग भी रखा है. हमारा भाव होना चाहिए. यह घर शिवजी का है एवं इसके एक कमरे में उनके आश्रय में कही हम भी रहा लेंगे. जब आपका पूरा घर शिव को सौप कर रहते है तो आप के घर को आप नहीं चलाते वह शिव चलाते है. बस यही भाव रखे कि हमारे घर में भगवान का कमरा नहीं है, भगवान के घर में हमारा एक कमरा है. अपनी पूरी तकलीफे, अपना जीवन शिव को समर्पित कर चले, फिर देखे शिव आपकी तकलीफे दूर करेगा.
कोई वाहन होता है, वह वाहन चालु करने के लिए एक चाबी की जरुरत होती है. एक छोटी सी चाबी बड़े से बड़े वाहन को चला देती है. तो फिर यह तो शिव महापुराण कथा है. एक बार भी यदि आप यह कथा श्रवण कर लेते है तो आपका जीवन चल निकलता है.
एक मनव्रत नाम का असुर था, उसने बहुत पाप किया. वह जानता भी था, मेरी म्रत्यु होने पर मुझे प्रेत की योनी मिलेगी, मुझे भटकना पड़ेगा, मेरी मुक्ति नहीं होगी. एक बार एक भक्त शिव का पूजन कर शिव की भस्म का त्रिपुंड लगा कर एक नंदी में पानी पिने गया. पानी पिते समय उसके सिर की भस्म नंदी में गिर जाती है. कुछ समय बाद वह मनव्रत नामक असुर वहीं उस नदी में पानी पिने आता है. जैसे ही वह वहां से जल ग्रहण करता है. उसकी मृत्यु हो जाती है. स्वयं शिवगण उसे लेने आते है एवं सद्गति प्राप्त होती है.
इसी के साथ आज द्वितीय दिवस की श्री शिवमहापुराण कथा यहीं समाप्त होती है.
हर हर महादेव
श्री शिवाय नमस्तुभ्यम 🙏🙏
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