श्रावण का महिना शिव की अविरल भक्ति को प्राप्त करने का महिना हैं. इस पवित्र माह में यदि आप शिव की भक्ति कर रहे हो, शिव पूजन में मन लगा रहे हो तो यह भी आपकी अपनी इच्छा से नहीं बल्कि देवाद्धिदेव महादेव ने ही कोई कृपा करी हैं जिससे हमें शिव भक्ति करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं.
इस पवित्र माह में बहुत लोग आडम्बर में लगे रहते हैं, परन्तु देवाधिदेव महादेव आडम्बर नहीं वह केवल आपके मन का भाव एवं पवित्र हृदय चाहते हैं.
जब भी आप मंदिर जाए तो ध्यान रखें आप जिसके समक्ष खड़े हैं, जिसके सम्मुख खड़े हैं वह आडम्बर, तृष्णा, मोह आदि से परे हैं. इसलिए जब आप की परीक्षा लेता हैं महादेव तो पहले वह आपसे इन सबसे मोह आदि ख़त्म करवाता हैं वह अहसास करवाता हैं कि सगे सम्बन्धी कुछ नहीं कर पाते हैं, बड़ा से बड़ा व्यक्ति जब कुछ नहीं कर पाते तब महादेव आपकी लाज रखता हैं. वह भोलेनाथ आपके कार्य को संभालता हैं.
शिव मंदिर में जाकर सेवा कार्य, झाड़ू, निर्माल्य को विसर्जन में रखना, पोछा लगाना भी पूछने की आवश्यकता नहीं होती, आप को जाकर यह सेवा कार्य करना चाहिए.
यदि आपके क्षेत्र में कोई पार्षद है, कोई पञ्च हैं, सरपंच हैं तो उन्हें कहने की आवश्कता नहीं होनी चाहिए कि आपको साफ़ सफाई कहाँ करवानी हैं, कहाँ नाली बनानी चाहिए
श्रावण के माह में माता लक्ष्मी कैलाश जाती एवं भोलेनाथ की सेवा करती. सोमवार, पर सोमवार निकल गए. आखरी सोमवार आया, भोलेनाथ ने कहा हे देवी लक्ष्मी इस संसार में ‘महा’ संबोधन मेरे साथ लगा हुआ हैं. इस सम्पूर्ण माह तुमने पुरी तल्लीनता से मेरी सेवा की हैं. आज तुम्हारी यह साधना पूजन सम्पूर्ण होता हैं. मैं तुम्हारी इस साधना से प्रसन्न हूँ एवं अपने नाम का संबोधन ‘महा’, मैं तुम्हे प्रदान करता हैं. वह दिन जब से लक्ष्मी माता का नाम ‘महालक्ष्मी’ हुआ वह दिन श्रावण का लक्ष्मी सोमवार ही था. इसलिए श्रावण माह के सोमवार का बहुत महत्व हैं.
लक्ष्मी एवं महालक्ष्मी में अंतर होता हैं – लक्ष्मी माँ जब आती हैं तो तुरंत चली जाती हैं. लक्ष्मी लम्बे समय तक आपके घर रूकती नहीं हैं, लेकिन महालक्ष्मी जब नारायण के आदेश से, शिवजी की कृपा से आपके घर आती हैं तो वह स्थाई रूप से निवास करती हैं. आपके घर स्थाई रूप से रुक जाती हैं.
जब हम शिव को जल अर्पित कर आते हैं, तो वह कलश खाली नहीं रहता साथ में माता लक्ष्मी की कृपा भी साथ आती हैं. मंदिर से जब वापिस आते हैं, तो थोडा सा अर्पित किया जल घर लाना चाहिए एवं अपने घर में थोडा थोडा छिटना चाहिए. जिससे घर में माता लक्ष्मी की कृपा से धन वैभव बना रहे.
कई लोग कहते हैं, श्रावण के माह में ऐसा क्या हुआ था, जिसके कारण श्रावण का इतना महत्त्व हैं
इतना जरुर हैं कि श्रावण के माह में समुद्र मंथन हुआ विष निकला शिव जी ने ग्रहण किया. इस कारण से क्या श्रावण का इतना महत्त्व कैसे हो सकता हैं?
प्रसूति जी का विवाह जब दक्ष प्रजापति के साथ हुई. तो उनके इस सम्बन्ध से कई पुत्र एवं पुत्रियों का जन्म हुआ. दक्ष प्रजापति द्वारा माता जगदम्बा की आराधना की जिससे उनके घर माँ जगदम्बा सती रूप में जन्मी. एवं माँ सती का जन्म महादेव से होता हैं. एक बार दक्ष प्रजापति की सभा में सभी बैठे थे. एक पंक्ति में देवाधिदेव महादेव बैठते हैं एवं एक पंक्ति में भगवान विष्णु बैठे होते हैं. दोनों एक दुसरे के दर्शन में खो जाते हैं. तभी सभा में दक्ष प्रजापति आते हैं. परन्तु शिवजी का ध्यान उन पर नहीं जाता हैं. उनका ध्यान शिवजी पर जाता हैं. दक्ष प्रजापति ने कहा हे शिव मेने अपनी बेटी का विवाह तुमसे किया हैं तुमने सभा में मेरा सम्मान नहीं किया, मैं तुम्हें श्राप देता हूँ तुम शमशान में निवास करोगे. देख नंदी को बड़ा बुरा लगा उन्होंने दक्ष प्रजापति को श्राप दिया हे दक्ष प्रजापति तूने हमारे स्वामी के बारे में अपशब्द कहें तुम्हे श्राप देता हूँ तुम्हारा शीश कटेगा. माता प्रसूति बड़ी व्याकुल हो गई. वे शिव जी की शरण में गई. पुनः उन्होंने शिवजी को अपने घर निवेदन कर निमंत्रित किया. एक माह दक्ष प्रजापति के यहाँ व्यतीत किया. एक माह जो कि श्रावण का माह था शिवजी का पूजन किया, आदर किया सत्कार किया. जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने माता प्रसूति से कहा हे माता प्रसूति राजा दक्षप्रजापति का शीश तो कटेगा. परन्तु मैं कटे हुए शीश के स्थान पर कोई दूसरा शिव लगा कर उन्हें पुनः जीवत कर दूंगा.
वह माह जब माता प्रसूति ने भोलेनाथ की वंदना की, उनका आदर सम्मान किया वह श्रावण का माह ही था.
शिव को मानने वाला यदि नारायण, राम या कृष्ण का अनादर करता हैं उस पर शिव कृपा कभी प्राप्त नहीं होती एवं नारायण, राम या कृष्ण को पूजने वाला, इनका मंत्र जाप करने वाला यदि शिव का अपमान करता हैं तो उस पर राम कृष्ण की कृपा कभी प्राप्त नहीं होती हैं.
जब भी आप घर में अपने पूजन घर में शिवलिंग रखें तो ध्यान रखें चाहे पूजन घर में, पूजा घर में शिवलिंग एवं शालिग्राम या लड्डू गोपाल दोनों रखना चाहिए. क्योंकि शिव के बिना नारायण अधूरे हैं एवं नारायन के बिना शिव अधूरे हैं. एवं ध्यान रखना चाहिए घर के अन्दर शिवलिंग का आकर सुनिश्चित करने के लिए - अपने हाथ पर दुसरे हाथ की हथेली रखकर अंगूठा ऊपर की ओर रखें जितनी उंचाई होती हैं, बस इसी आकार का शिवलिंग होना चाहिए. इससे छोटा हो तो चलेगा, परन्तु इससे बड़ा शिवलिंग घर में नहीं रखना चाहिए. यदि बड़ा शिवलिंग हैं, तो घर के बाहर तुलसी क्यारी में, या घर के बाहर आँगन में कोई छोटा सा मंदिर बना हो आप वहां बड़ा शिवलिंग रख सकते हैं. परन्तु घर के अन्दर हथेली की उंचाई से ज्यादा बड़ा शिवलिंग नहीं होना चाहिए.
श्रावण माह में 23 जुलाई को ऑनलाइन अभिषेक शाम 7 बजे से 8 बजे तक पार्थिव शिवलिंग का आयोजन किया जाएगा. अपने गाँव के जो भी आदरणीय विद्वत जन को उन्हें निमंत्रण दे कर उन्हें भी पूजन में निमंत्रण देवे. अभिषेक में सहपरिवार सम्मिलित होवे.
गुरुदेव द्वारा बताई गई सम्पूर्ण पूजन सामग्री आप को ऐप Gurudev Pandit Pradeep Mishra App पर उपलब्ध रहेगी. ऐप के महत्वपूर्ण वीडियो खंड में आप पूजन सामग्री देख सकते हैं. साथ ही उपाय खंड में सूचि उपलब्ध होगी.
प्रतिदिन हम लगभग 21600 श्वास लेते है. वह प्रत्येक श्वास एक शिव का रूप है. जब तक वह श्वास आती है हम जीवित होते है अन्यथा शरीर एक लाश हो जाता है. इसी...
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स्कंध पुराण में, विष्णु पुराण में पांच ऐसे वृक्ष बताए हैं जिनके निचे से केवल आप निकलकर भी चले जाए तो आपको अद्भुत बल प्राप्त होता हैं. जब आप कुर्म ...
शिव-भक्ति का मुख्य आधार विश्वास हैं. यदि आप शिव पर विश्वास करते हैं तो ही शिव आपको प्राप्त होता हैं. आपके द्वारा किये गए विश्वास के कारण ही शिव आप...
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