ब्राहमण भोजन के समय या किसी दान के पूर्ण संकल्प लिया जाता है. उस संकल्प में हाथ में जल, सिक्का एवं चावल लिया जाता है. इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण जल होता है.
यदि संकल्प में कुछ हो न हो यदि मात्र जल भी हो तो भी संकल्प पूर्ण माना जाता है. जब हम प्रतिदिन 1 लोटा जल लेकर शिव के द्वार जाते है. अपने मनोरथ बताते है, तो शिव हमारे उस संकल्प रूपी मनोरथ को जरुर पूरा करता है.
गुरु बनाते समय सोच विचार कर के गुरु बनाना चाहिए. एक माँ बच्चे को जन्म देती है, वहीँ एक गुरु एक शिष्य को जन्म देता है.
जिस तरह माँ अपने संस्कारों से अपने बच्चे को पालती है उसे दुनीया में रहने का तरीका सिखाती है. उसे बड़ा करती है. उसी तरह एक गुरु, शिष्य को परमात्मा तक पहुचते का रास्ता बताता है.
कभी ऐसा गुरु मत ढूढना या ऐसे व्यक्ति को गुरु मत बनाना जिसके मुख से पर निंदा ही मिलती है, जो अभद्र भाषा बोलते हो, जो आलोचना में लगे रहते हो. यदि कोई गुरु नहीं मिले तो एक लोटा जल अर्पित कर भोलेनाथ को स्पर्श करते हुए उन्हें ही अपना गुरु मानलेना चाहिए.
संसार में जब आप आते है तो आवश्यक होता है कि आप किसी को अपना गुरु अवश्य बनाएं. (यदि कोई न मिले तो शिव को गुरु मानकर पूजन अर्चन कर सकते है).
लंका का राजा रावण उसने सप्तऋषियों को अपने अधीन कर लिया था. यही नहीं उसने कुबेर, इंद्र तक को अपने अधीन कर लिया. परन्तु वह अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्र नहीं कर पाया. अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण न होने के कारण ही उसका विनाश हुआ.
कलिकाल में इन्द्रियों को संयमित करने का तरीका भी एक लोटा जल है. एक लोटा जल शिव पर अर्पित करने से इन्द्रियां संयमित होती है. इन्द्रिया संयमित रहती है तो स्वतः कार्य में में मन लगने लगता है. जीवन शैली में सुधार होने लगता है.
कलियुग का एक सबसे बड़ा फल है. यह ना त्रेतायुग में मिला, ना सतयुग में मिला यह फल, भोलेनाथ ने केवल कलियुग को प्रदान किया है.
अगर कोई भगवान के नाम को जप रहा है, चाहे राम नाम, शिव नाम, माँ दुर्गा नाम या अन्य किसी भगवान के नाम का जप मात्र कर रहा है तो ऐसे व्यक्ति के दर्शन मात्र करने वाले का भी उद्धार हो जाता है.
गुरुदेव द्वारा जनमानस में चेतना हेतु बताया गया आजकल ऑनलाइन फ्रॉड बहुत बढ़ गए है. जब भी कोई अधिकारी बनकर फोन करें, या वीडियो कॉल कर आपसे कोई भी ओ.टी.पी. आदि शेयर करने का कहे या कोई अन्य निजी जानकारी शेयर करने का कहें तो न करें. ऐसे झुटे फोन काल आदि से कई लोग अपने जीवन भर की पूंजी गवा देते है.
जहाँ स्वार्थ होता है, वहां से शिव दूर हट जाते है. व्यक्ति का स्वार्थ उसे परमात्मा से दूर कर देता है.
यदि परमात्मा के आशीर्वाद से कहीं कोई अच्छा पद प्राप्त हो, अच्छे स्थान को प्राप्त हो जाए तो जीवन में प्रयास करें अन्य लोगो को मदद करें, उनकी समस्या को भी दूर करने का प्रयास करें. आपका यह परमार्थ, आपको उच्च स्थान पर बनाए रखता है.
एक घर जिसमें किसी के आने पर भोज्य पदार्थ को छिपा कर रख दिया जाता है, कि वह फला फला आ गया है उसे नहीं देते, यह सामग्री तो हमारे लिए है ऐसे घर में अन्नपूर्णा कभी वास नहीं करती. बल्कि यदि कोई अतिथि भी आया है, घर में कुछ न होने पर भी उसे अपने हिस्से का भोजन अर्पित कर देना चाहिए. ऐसे घर से अन्नपूर्णा कभी रूठती नहीं है. वहां हमेशा माता अन्नपूर्णा का वास रहता है.
पूजन के दौरान आपके पास कोई सामग्री है, किसी और के पास नहीं है तो आप उनसे निवेदन कर सकते है है आप मेरे हाथ को अपना हाथ लगा सकते है. यदि दो बेलपत्र है तो एक अन्य को दे सकते है, यह स्वार्थ नहीं, परमार्थ होता है. यदि किसी कार्य के लिए जा रहे है, भजन, कथा, शिवपुराण में सम्मिलित होने जा रहे है तो प्रयास करें अपने साथ अन्य को भी साथ लाने का प्रयास करना चाहिए. ताकि आपके प्रयास से किसी अन्य का भी उद्धार हो सकें.
जीवन में जैसे धुप छाव आती रहती है, कभी धुप रहती है तो कभी छाव रहती है. वैसे ही सुख दुःख का सम्बन्ध होता है. जीवन में सुख है तो दुःख भी आएगा. और यदि दुःख है तो सुख भी आएगा.
जैसे तेज धुप सर पर आती है तो हम कोई कपड़ा या छाता लगा लेते है ताकि उस तकलीफ को कम किया जा सके, इसी तरह जब दुःख की तेज धुप आये तो शिवनाम की छाया हमें शान्ति प्रदान करती है.
हमें पूरी लगन एवं मेहनत से अपना कार्य करते रहना चाहिए, फल देने वाला महादेव है. उसकी दया एवं करुणा से जीवन में आनंद की प्राप्ति होती ही है.
घर में खाना खाते समय पूरी थाली सजी है, रोटी, सब्जी, मिठाई, पकवान एवं साथ में थोड़ी चटनी भी है. अब यदि पूरा भोजन अच्छा हो, एवं चटनी में कुछ कमी हो तो पूरा घर बहु को डाटने लगता है, कैसी चटनी बनाई है, चटनी बनाते नहीं आती आदि.
किसी व्यक्ति में चाहे कितनी भी अच्छाई हो, हमारा ध्यान केवल उसके दुर्गुणों पर जाता है. यदि किसी ब्यक्ति में कोई अच्छाई है तो उस अच्छाई को अपने जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करें.
जब कोई व्यक्ति आपसे दूर हो, किसी अन्य शहर में हो एवं आप चाहते है उसका कार्य पूरा होना चाहिए तो ब्राह्मणी माता का स्मरण करते हुए एक लोटा जल अर्पित करना चाहिए. इससे उस व्यक्ति का कार्य पूरा होता है.
आज सनातन धर्म को दूसरों से जितनी चोट नहीं पहुचती उससे कहीं ज्यादा चोट अपने धर्म के लोगो से ही पहुच रही है. विरोध करना है तो गौ हत्या का विरोध होना चाहिए, विरोध करना है तो छोटी छोटी बेटियों के साथ गलत काम करने वालों का विरोध करना चाहिए. परन्तु हम उनका विरोध करने के बजाय सनातनी आपस में ही एक दुसरें का विरोध करने लगते है.
उक्त विचारों के साथ पांच दिवसीय शिव महापुराण कथा का निकुम, दुर्ग छत्तीसगढ़ में समापन होता है.
कथा में गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी द्वारा जो भी महत्वपूर्ण बिंदु व्यक्त किये उन्हें सार गर्भित कर आपके समक्ष प्रस्तुत किया गया. किसी तरह की कोई कमी रही हो तो हम क्षमा चाहते है. भोलेनाथ सभी के मनोरथ पुरे करें. इसी भाव के साथ श्री शिवाय नमस्तुभ्यम
प्रतिदिन हम लगभग 21600 श्वास लेते है. वह प्रत्येक श्वास एक शिव का रूप है. जब तक वह श्वास आती है हम जीवित होते है अन्यथा शरीर एक लाश हो जाता है. इसी...
आज से हैदराबाद में गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी की श्री शिव महापुराण कथा प्रारम्भ हो रही है. आज कथा के प्रथम दिन गुरुदेव द्वारा अजामिल, बिंदुक-चं...
गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी द्वारा भिलाई, छत्तीसगढ़ में चल रही श्री शिवमहापुराण कथा के अंतिम दिवस आज कथा का वाचन किया गया हैं. उक्त कथा का संक्षे...
श्रावण सोमवार के दिन आज गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी के श्री मुख से पवित्र श्री शिवमहापुराण कथा के छटे दिन आज सुन्दर कथा श्रवण करने का सौभाग्य प्...
जब भी प्रेम का नाम आता हैं, तो सबसे पहले शिव का नाम आता हैं. शिव प्रेम देते भी हैं और शिव अपने भक्तों का प्रेम प्राप्त भी करते हैं. आज के दिन को म...
सम्पूर्ण माह में केवल श्रावण माह एक ऐसा माह हैं, जिसमें मनुष्य हो, सर्प हो, किन्नर हो, गन्धर्व हो या कोई भी जीव हो, यदि वे शिव मंदिर के सामने से भी...
एक मन और दूसरा मंदिर यह दोनों जितने निर्मल और साफ़ होंगे उतना ही भगवान महादेव की कृपा हम सब पर होती हैं. मन भी निर्मल और साफ़ होना चाहिए, यदि मंदिर ...
श्रावण महीने में जितना जितना शिव नाम लिया जाता हैं, जितना शिव भक्ति में इस मन को लगाया जाता है, उतना ही जीवन में आनंद की अनुभूति होने लगती हैं. जम...
स्कंध पुराण में, विष्णु पुराण में पांच ऐसे वृक्ष बताए हैं जिनके निचे से केवल आप निकलकर भी चले जाए तो आपको अद्भुत बल प्राप्त होता हैं. जब आप कुर्म ...
शिव-भक्ति का मुख्य आधार विश्वास हैं. यदि आप शिव पर विश्वास करते हैं तो ही शिव आपको प्राप्त होता हैं. आपके द्वारा किये गए विश्वास के कारण ही शिव आप...
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