एक समय शुम्भ-निशुम्भ एवं रक्तबिज ने तीनों लोको में हाहाकार मचाकर रखा था. सभी देवताओं के निवेदन करने पर भोलेनाथ ने माँ पार्वती से भक्तों की रक्षा करने को कहा. माँ पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण कर शुम्भ-निशुम्भ का वध कर दिया, जब रक्त बिज का वध किया तो उसके रक्त से लाखों रक्त बिज दैत्य उत्पन्न हो गए. यह देखकर माँ दुर्गा को अत्यंत क्रोध आया. क्रोध की वजह से माँ रूप श्यामल हो गया एवं इसी स्वरूप के साथ कालरात्रि देवी का प्राकट्य हुआ. माँ कालरात्रि ने रक्त बिज से गिरने वाले रक्त को अपने मुंह में भर लिया एवं सभी दैत्यों का नाश कर भक्तों को सुख एवं शांति प्रदान की. इसी कारण माँ का नाम शुभंकरी भी हुआ.
माँ कालरात्रि को लाल रंग के पुष्प जैसे गुडहल एवं गुलाब अर्पित किए जाते है.
माँ कालरात्रि को गुड़ एवं गुड़ से बने व्यंजन का भोग लगाया जाता है
मंत्र
'ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।
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