नवरात्रि के पांचवें दिन माँ दुर्गा के स्कन्दमाता स्वरूप का पूजन किया जाता है.
पौराणिक कथा के अनुसार, कहते हैं कि एक तारकासुर नामक राक्षस था। जिसका अंत केवल शिव पुत्र के हाथों की संभव था। तब मां पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंद माता का रूप लिया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया था। माँ स्कन्दमाता की आराधना से भगवान कार्तिकेय जी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है.
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कार्तिकेय जी को ‘मुरुगन’ एवं ‘सुब्रमण्यम’ के नाम से भी जाना जाता है.
माँ स्कन्दमाता चार हाथों वाली देवी है, जो अपनी गोद में कार्तिकेय को पकडे हुए है. वह शेर की सवारी करती हुई दिखाई देती है. माँ स्कन्दमाता अपने भक्तों को धन, बुद्धि और मोक्ष प्रदान करती है.
माँ स्कंदमाता को प्रसाद रूप में केले का भोल लगाया जाता है.
देवी स्कंदमाता का मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया । शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
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