नवरात्रि के छटे दिन माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप का पूजन एवं आराधना की जाती है.
कात्य गोत्र में प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने माँ भगवती की कठिन तपस्या की. उनकी इच्छा थी माँ भगवती उन्हें पुत्री रूप में प्राप्त हो.
महर्षि कात्यायन की यहाँ जन्म लेने से माँ का नाम कात्यायनी हुआ.
मान्यता है माँ कात्यायनी की उपासना से अविवाहित कन्याओं का विवाह होता है.
द्वापर में गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए माँ कात्यायनी की पूजा की थी. इसलिए ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित है.
जिनकी कुंडली में गुरु गृह अशुभ स्थिति में होता है उन्हें माँ कात्यायनी की उपासना की सलाह दी जाती है.
इनकी चार भुजाएं है. जो की अभय मुद्रा, वर मुद्रा, तलवार धारण किये हुए और कमल पुष्प से सुशोभित है.
माँ कात्यायनी को लाल रंग प्रिय है. माँ को लाल पुष्प गुडहल या गुलाब के समर्पित करने चाहिए.
माँ को प्रशाद में शहद का भोग लगाया जाता है.
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