कार्तिक माह की चतुर्दशी तिथि को रूपचौदस के रूप में मनाया जाता है. इसे नरक चतुर्दशी भी कहते है. इस दिन की गई पूजा यम के भय से, नर्क से बचाती है एवं परिवार को धन धान्य से परिपूर्ण करती है.
पूजन समय – यह पूजन प्रदोष काल में किया जाता है. विशेष मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती है
पूजन सामग्री – सामान्य पूजन सामग्री जो धनतेरस के दिन ली गई (धनतेरस पूजन विधि देखें)
विधि
धनतेरस के दिन जो पाट आपने रखा है उसी पर पूजा शुरू करना है, यदि वह पाट हटा दिया हो या थाली कहीं ओर रख दी हो तो पुनः आप शुरू कर सकते है. (पाट रखने का तरीका धनतेरस पूजन विधान में दिया है) शेष पूजन उसी तरह करनी पानी का छिटा, रोली, कुमकुम, मौली आदि से पूजन करें.
आज 1 दीपक आटे का चौमुखी लगाएं (सरसों, तिल्ली, मूंगफली कोई भी तेल उपयोग कर सकते है)
दीपक में चार बाती होनी चाहिए. दीपक में थोड़ी सी पिली सरसों (पिली सरसों न होतो काली सरसों) उस दीप के अन्दर डाल देवे.
एक घी का दीपक लगाएं. घी का दीपक लक्ष्मी जी के सीधे हाथ (आपके उल्टे हाथ) पर रखें. लक्ष्मी जी के उल्टे हाथ (आपके सीधे हाथ पर चौमुखी दीपक रखें)
जल के छीटों से माँ लक्ष्मी (सिक्कों) का पूजन करें. बड़े भाव से पूजन सामग्री (कुंकू, मौली, अबीर, गुलाल, मेहँदी जो भी सामग्री हो) अर्पित करें. लाल पुष्प अर्पित करें.
पांच अमरबेल के टुकड़े, पांच कमल गट्टे, पांच हल्दी की गाँठ उस पर समर्पित करें. माता लक्ष्मी को मीठे का भोग लगाएं. भोग लगाकर जो घी का दीपक लगाया है उस दीपक से माता की आरती करें. माता लक्ष्मी को प्रणाम करें, विनती करें, अपनी झोली को पसार कर निवेदन करें हे माँ लक्ष्मी भगवान नारायण के साथ आप हमारे घर हमेशा निवास करें. अपने कुलदेव, इष्टदेव, पितृ देव का स्मरण करें.
घर के सारे द्वारा खोल कर जो चौमुखी दीपक लगाया है उसे पुरे घर में घुमाएं एवं मुख्य द्वार के बीचों बिच उस दीपक को रख दीजिए. प्रणाम करिए. और वापिस घर में आ जाइए. कुछ समय द्वार खुले रखीए. एवं माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए आनंद से समय व्यतीत करिए.
माता लक्ष्मी सबके भण्डार भरें इसी भाव के साथ श्री शिवाय नमस्तुभ्यम
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