पितृ पक्ष में इस कथा का स्मरण करने से पितृ दोष शांत होता है।
जठा और मठा दो भाई थे। मठा की पत्नी स्वभाव से तेज और लालची थी। वह पूर्वजों की संपत्ति खुद ही हड़पना चाहती थी। एक दिन उसने मठा से कहा, "स्वामी, जब पूरी संपत्ति हमारी है, तो इस भाई जठा को क्यों साथ रखते हो? इसे घर से निकाल देना चाहिए।"
मठा ने अपने भाई जठा को बुलाकर कहा, "तुम्हें इस घर में नहीं रहना चाहिए। तुम्हारे यहां रहने से बेवजह विवाद होते हैं।" जब जठा ने अपना हिस्सा मांगा, तो उसे जबरन घर से निकाल दिया गया। जठा और उसकी पत्नी रोते हुए घर से निकल गए और दूर जाकर दो आम के पेड़ों के बीच एक छोटी सी झोपड़ी बना ली।
पितृ पक्ष आया। मठा की पत्नी ने कहा, "आपके दादाजी का श्राद्ध आ रहा है। सभी रिश्तेदारों को बुला लीजिए। वे हमारा नया घर देखेंगे और हम सबसे मिल भी लेंगे।" मठा की पत्नी को अपनी संपत्ति और रहन-सहन दिखाने का अभिमान था।
दूसरी ओर, जठा की पत्नी ने भी श्राद्ध का स्मरण कराते हुए कहा, "स्वामी, हमारे पास तो कुछ भी नहीं है। आज दादाजी का श्राद्ध है, किसी से थोड़ा भोजन मांग लाइए ताकि हम ब्राह्मण को भोजन करा सकें।" जठा ने अपने एक व्यापारी मित्र से सामग्री उधार मांगी, लेकिन वह भी मना कर गया। निराश होकर जठा ने कहा, "आज दादाजी का श्राद्ध है, उपले(कंडे) पर धूप देने के लिए थोड़े चावल, शकर और घी ही दे दो।" व्यापारी ने थोड़े चावल, गुड़ और घी दे दिया।
घर आकर जठा ने धूप के लिए तैयारी की। उसकी पत्नी ने घर की साफ-सफाई की और दरवाजे पर पानी छिड़का, भाव विभोर होकर पितरों के स्वागत की तैयारी की। जब पितर पृथ्वी पर आए, तो सबसे पहले वे अपने पुराने घर गए। वहां उन्होंने देखा कि सभी भोजन में व्यस्त हैं, किसी ने धूप नहीं दी, न ही श्वान(कुत्तें), गाय और कौवे को उनका भाग प्रदान किया। पितर निराश होकर उस घर को श्राप देते हुए छोटे बेटे जठा के घर की ओर गए।
जब वे जठा के घर पहुंचे, तो देखा कि वह बहुत गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहा है, लेकिन फिर भी अपनी सामर्थ्य अनुसार धूप दे रहा है। पितर प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया। अमावस्या के दिन प्रदोष काल में, जब पितर देवता आर्यमा स्वामी, कौवे पर बैठ कर पितरों को लेने आए, तो जठा ने अपने पितरों की शांति के लिए नदी के किनारे दीप जलाया। यह देखकर पितर आर्यमा से जठा को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद दिलवाते हैं और कुल वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
पितरों के आशीर्वाद से जठा दिन प्रतिदिन उन्नति करने लगा, जबकि मठा, पितरों के श्राप के कारण, कष्ट और दुखों से घिरा जीवन जीने लगा।
नोट: पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन प्रदोष काल में (शाम के समय) किसी नदी, तालाब या जलाशय के किनारे दीप अवश्य जलाएं। यदि पास में ऐसा कोई स्थान न हो, तो पीपल या बिल्व वृक्ष के नीचे दीप जलाएं।
श्री शिवाय नमस्तुभ्यम
कृपया इस कथा को सभी से साझा करें, ताकि अधिक से अधिक लोग पितरों की कृपा प्राप्त कर अपने जीवन की समस्याओं का समाधान कर सकें।
हर हर महादेव
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