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Pandit Pradeep Mishra - सम्पूर्ण जानकारी

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श्री कृत्तिवासेश्वर महादेव, काशी

मकान संख्या 46/23 मृत्युंजय महादेव मंदिर मार्ग में कृतिवासेश्वर लिंग , उत्तरप्रदेश
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परम आदरणीय गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी द्वारा दिनांक 9 जून 2025 की बाड़ी, महाराष्ट्र में चल रही श्री शिवगण भृंगी श्री शिव महापुराण कथा में श्री कृत्तिवासेश्वर महादेव मंदिर का उल्लेख किया गया था. हम आपके लिए उक्त मंदिर की समस्त जानकारी लेकर आए है.
गुरुदेव के अनुसार लिंग पुराण, श्री शिवमहापुराण कथा में श्री कृत्तिवासेश्वर महादेव शिवलिंग को 13 वे ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है.

संकलित की गई जानकारी के अनुसार -
कृतिवासा शिव (Krittivasa Shiva) एक संस्कृत नाम है जिसका अर्थ है "शिव का रूप" या "शिव की कृपा". यह शैव परंपरा में शिव के एक विशिष्ट रूप का वर्णन करता है, जो अपनी शक्तियों और गुणों के लिए प्रसिद्ध है.

काशी के हरतीरथ क्षेत्र में स्थित कृतिवासेश्वर् महादेव (कृत्तिवासेश्वर महादेव) मन्दिर काशी के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है। उपेक्षा के कारण यह मंदिर मुग़ल काल से ही खुले आसमान के निचे स्थित है। यहाँ तक की आज भी यहाँ मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज पढ़ते हैं एवं इसे आलमगीर मस्जिद बताते हैं। इस मंदिर का वर्णन काशी खण्ड में भी आता है। यह काशी का एक अद्भुत मंदिर है, यहाँ एक कुण्ड भी है जहाँ एक युग में कौवे भी स्नान करते तो हंस बन जाते, इसकी कथा काशीखण्ड पुराण में भी वर्णित है।
उक्त मंदिर में पुलिस प्रशासन की सुरक्षा में पूजन अर्चना होती है. इस मंदिर को प्राचीन माना जाता है, जो विदेशी आक्रान्ताओं के कारण जीर्ण क्षीर्ण हो गया था.
नया मंदिर -
राजा पटनीमल के आदेश पर जो शिवलिंग एक मंदिर में विराजित किया गया वह भी श्री कृत्तिवासेश्वर महादेव मंदिर के नाम से है. राजा पटनीमल के स्वपन में भगवान ने दर्शन दिए एवं माँ नर्मदा में स्वयं के होने की बात कही.
ऐसा माना जाता है कि राजा पटनीमल ने 1660 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। 21 ब्राह्मण मध्य प्रदेश गए और नर्मदा नदी के तट से शिवलिंग को लाने की कोशिश की, लेकिन दो बार शिवलिंग नदी में छूट गया। तीसरे प्रयास में, शिवलिंग खुद ही नर्मदा से बाहर आ गया और उसे काशी में लाया गया।
नोट: फोटो में तीसरे नंबर पर लाल पुष्प से सुसज्जित शिवलिंग की फोटो नए मंदिर से है

मंदिर का पौराणिक संदर्भ
लिंग पुराण के अनुसार
ऐतद्दारुवनस्थानं कलौ देवस्य गीयते
परात्परं तु यज्ज्ञानं मोक्षमार्गप्रदायकम
प्राप्यते द्विजशार्दूल कृत्तिवासे न संशयः
कृते तु त्रयंबकं प्रोक्तं त्रेयायां कृत्तिवाससम।

इस श्लोक का अर्थ है कि कलयुग में दारुकावन शिव का स्थान है। मोक्षमार्ग देने वाला परात्पर ज्ञान कृत्तिवासेश्वर के दर्शन से प्राप्त हो जाता हैं इसमें कोई संदेह नहीं हैं। काशी में भी दारुकावन नाम का एक क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ही विराजते हैं कृत्तिवासेश्वर महादेव।
भगवान् शिव माता पार्वती से रत्नेश्वर की महत्ता का वर्णन कर रहे थे उसी समय महिषासुर का पुत्र गजासुर, बुरी तरह शिवगणों की पिटाई कर उनका प्राणान्त कर दे रहा था। गजासुर ने सम्पूर्ण जगत में हाहाकार मचा रखा था।
परन्तु भगवान काशी पुण्य क्षेत्र में कोई व्यवधान उत्पन्न करना नहीं चाहते थे। जब गजासुर भगवान की ओर लपका तब भगवान ने अपने त्रिशूल से प्रहार करके आकाश मे ही उसको लटके हुये रोक दिया। मृत्यु से पूर्व गजासुर ने भगवान से कहा कि उसे बड़ी प्रसन्नता है कि भगवान शिव के हाथों उसका प्राणान्त हुआ और यह उसके लिये भगवान का आशीर्वाद है। उसने अपनी इच्छा प्रकट कि मेरी मृत्यु के पश्चात् मेरे खाल को भगवान शिव धारण करें ताकि उसे भगवान के सान्निध्य का सुख हमेशा मिलता रहे।
भगवान इस बात पर सहमत हो गये और वर्णन करने लगें कि गजासुर की मृत्यु अविमुक्त क्षेत्र काशी में हुई इसलिये इसी स्थान पर उसका शरीर एक विशाल शिवलिंग का रूप धारण कर लेगा। यह विशाल शिवलिंग कृतिवासेश्वर नाम से प्रसिद्ध होगा। इसके बाद भगवान ने वर्णन किया कि मानव कल्याणार्थ, वह स्वयं माता पार्वती सहित सदैव इस लिंग में विराजमान रहेंगे।


पुराणों में कृत्तिवासेश्वर की महिमा कुछ इस तरह से वर्णित है
कृत्तिवासं महालिंगं वाससौख्यकरं परम
यस्य दर्शनमात्रेण न मोक्षावि सुदुर्लभम
(ब्रह्मवैवर्त पुराण)

जन्मान्तरं सहस्रेण मोक्षोन्यत्राप्यते न वा
एकेन जन्मना मोक्षः कृत्तिवासेत्र लभ्यते
(कूर्म पुराण)

कृत्तिवासेश्वरं देवं ये नमन्ति शुभार्थिनः
ते रुद्रस्य शरीरे तु प्रविष्टाः अपुनर्भवाः
अनेनैव शरीरेण प्राप्ता निर्वाणमुत्तमम
(लिंग पुराण)


विशेष पूजा अर्चना
प्रत्येक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखकर कृतिवासेश्वर की पूजा अर्चना से सर्वसुख की प्राप्ति होती है। पूरा माघ महीना, शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तथा चैत्र मास पूर्णिमा के दिनों में कृतिवासेश्वर लिंग की पूजा अर्चना विशेष फलदायी है।
लिंग स्थान विवरण (कैसे पहुंचे)
काशी के विश्वेश्वरगंज क्षेत्र में मकान संख्या 46/23 मृत्युंजय महादेव मंदिर मार्ग में कृतिवासेश्वर लिंग स्थित है। किसी भी वाहन द्वारा विश्वेश्वरगंज पोस्ट ऑफिस तक फिर पैदल गली मार्ग से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

उक्त जानकारी कुछ वेबसाइट एवं यूट्यूब पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर संकलित की गई है